"वो नसीब" (That Destiny)
- dramanyadav98
- Apr 18
- 1 min read
जब तू था...
तो वक़्त भी
ख़ामोश सा लगता था,
हर लम्हा तेरा नाम पढ़ता था,
जैसे इश्क़ ने वक़्त को भी अपना बना रखा था।
तेरी हँसी...?
कोई सूफ़ी सदा थी, रहमतों से भरी,
जो दिल पे गिरती थी — पर ज़ख़्म नहीं करती थी कभी।
हमने कुछ ना माँगा तुझसे,बस एक लम्हा —
जो चले संग दिल से,
जहाँ ना हो कोई नाम,
ना हो साया,
बस एहसास हो...
और साथ हो पाया।
पर क़िस्मत...?
वो रस्ता देती है, मंज़िल नहीं,
जिससे गुज़रो भी — वो हासिल नहीं।
तू चली गई...
पर मैं वहीं था — जहाँ तू मिली थी कभी।
रुका हुआ उस मोड़ पे आज भी,
जहाँ तेरी एक मुस्कान ज़िंदगी सी लगी थी।
अब मेरी तन्हाइयाँ तुझसे बातें करती हैं,
और मेरी चुप्पियाँ... तेरा नाम पढ़ती हैं।
एक रात...
मैंने चाँद से पूछा — "क्या तूने भी खोया है कभी?
"वो हँसा... और आसमान और गहरा हो गया तभी।
फिर हवा से कहा —
"क्या तू भी यादों में भीगती है?”
उसने मेरी साँसों में ठंडक घोल दी...
और फिर,
जैसे ख़ुद ही खो सी गई।
अब सुन...
कहाँ से लाऊँ वो नसीब — जो इसे मेरा कर दे?
ख़्वाबों के शहर में कोई रास्ता — बस तेरा कर दे।
मैं ढूँढता हूँ खुद को... तेरी यादों के पीछे,
कोई वक़्त का जादू... मुझे फिर से तेरा कर दे।
कुछ मोहब्बतें मुकम्मल नहीं होतीं...
मगर अधूरी रहकर — अमर हो जाती हैं।













Comments